देश से प्रतिभा पलायन हो रहा है, यह ग़म और दुख चारों ओर व्याप्त रहा. कई मंचों पर वाक् युद्ध हुए और काफी दिन तक चलते रहे. किसी ने कुछ कारण बताया तो किसी ने कुछ. कुछ ने आरक्षण को कोसा तो कुछ ने सरकारी नीतियों को. पर एक बात जो ध्यान में नहीं आई और जिसपर ध्यान दिया भी नहीं गया वह यह कि हमारे देश से प्रतिभा पलायन बहुत पुरानी बात है. शायद हमारे डीएनए कुछ ऐसे बन गए हैं जो गुलामी की मानसिकता में जीवनयापन करने में अपना भला समझता है, और समझे भी क्यों न हमारा इतिहास रहा है कि हमारे देश पर खूब आक्रमण हुए. कहा जाता है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने नरमेध रचाए और हमें गुलाम बनाया. लेकिन इस गुलामी का सौन्दर्य देखए कि हमें गुलाम बनाने वाला बाहर से आता था और यहॉं आकर यहीं के लोगों की फौज तैयार कर लेता था. ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलेंगे आपको विश्व इतिहास में जहॉं मूलनिवासी ही आक्रमणकारी की फौज में शामिल होकर अपने ही देशवासियों को लूटने लगे हों. गुलामी में कर्तव्यपरायणता की पराकाष्ठा भी तो होती है. सारे कप्तान अंग्रेज लेकिन फौज और सिपाही देशी लेकिन कानून को लागू करवाने के लिए लामबन्द, सजग, मुस्तैद - क्या कहा जाए इस कर्तव्य-परायणता को. और जिस दिन अंग्रेजों को लगा कि अब सिपाही उनका वास्तव में बागी हो गया है तो उन्होंने फौरन देश छोड़ने में भलाई समझी - याद कीजिए मुम्बई तत्कालीन बम्बई में नौसैनिकों का विद्रोह.
खैर प्रतिभा पलायन तो होता रहेगा. तनिक चिन्तन कीजिए कि हमारी यह गुलामी की मानसिकता कैसेट दूर होगी.
Monday, March 19, 2007
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2 comments:
मानसिक गुलामी और प्रतिभा-पलायन से सम्बन्धित आपकी विचारों से असहमत नहीं हुआ जा सकता। किन्तु अच्छा होता कि दो कदम और आगे बढ़कर आप कुछ सुझाव देते जिससे गुलामी में आराम से पड़े रहने की हमारी बुरी लत को समाप्त करने में मदद मिलती और हमारी मानसिक आलस्य दूर होता।
आपकी चिन्ता पढकर एक कहावत ध्यान में आई.My country, right or wrong; if right, to be kept right; and if wrong, to be set right.(Carl Shurz)
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